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हमारे बदलते गाँव


प्रस्तुत पाठ में गाँवों के बदलते स्वरूप का वर्णन किया गया है । यह भी बताया गया है कि इन बदलावों से गाँवों पर अच्छे और बुरे प्रभाव पड़े हैं और नई पीढ़ी गाँवों के विकास में योगदान दे सकती है । रेलगाड़ी ने स्टेशन छोड़ा । धीरे - धीरे स्टेशन पीछे छूटने लगा दादा ने चश्मा ठोक किया और किताब खोली । मोनू खिड़की से बाहर झाँक रहा था । अचानक उसने दादा जो का हाथ पकड़कर खींचा और कहा , " दादा जी देखिए सफ़ेद बकरियाँ " दादा जो ने खिड़की के बाहर देखा , फिर मुस्कुराकर बोले , “ मोनू बाबू , ये बकरियाँ नहीं भेड़ें हैं । " मोनू का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया । " इतनी सारी भेड़ें एक साथ ! " दादा जी ने किताब बंद करके एक ओर रख दी और मोनू से बोले , " भेड़ - बकरियों को तो हमेशा झुंड में ही पालते हैं । अब शाम घिर आई है इसलिए चरवाहे इन्हें वापस घर ले जा रहे हैं । बेटा , यह तो गाँवों का बड़ा स्वाभाविक सा दृश्य है कि सुबह पशु चारागाह * में चराने के लिए ले जाए जाते हैं और शाम को वे सब अपने - अपने घर लौट आते हैं । ' “ क्या जानवरों का भी घर होता है ? " मोनू ने पूछा । दादा जी के मुँह पर एक उदास सी हँसी छा गई । फिर वे बोले , " तुम महानगरों के रहने वाले तो कल्पना भी नहीं कर सकते कि गाँव के घरों में एक बड़ा सा घेर पशुओं के लिए होता है । वहाँ गाय - बैलों को बाँधते हैं । दूध का व्यापार करने वाले भैंसें पालते हैं । अब तो लोग मुरगी भी पालने लगे हैं । कुछ लोग भेड़ - बकरियाँ भी पालते हैं । " " ये सब मैं गाँव में देख सकूँगा ? " मोनू ने उत्साहित होकर पूछा । " हाँ बेटा , देख सकोगे । गाँव का जीवन खेत और पशुओं से जुड़ा है । किसान ज़मीन पर खेती करते हैं और पशु इसमें उनकी सहायता करते हैं । बैल हल चलाता है , उसके गोबर से खाद बनती है । ' " पर चाचू तो ट्रेक्टर से खेत में काम करते हैं । " मोनू ने दादा जी की बात काट कर कहा । " ठीक कह रहे हो मोनू बाबू । " दादा जी ने ठंडी साँस लेकर कहा , “ ये लोहे के दानव अब गाँव तक भी पहुँच गए हैं । पर बेटा , इनसे खाद के लिए गोबर नहीं मिलता । इनका धुआँ हमारे वातावरण को दूषित करता है । गाँव की जो हवा स्वास्थ्यवर्धक कही जाती थी , इस धुएँ से ज़हरीली होने लगी है । " " दादा जी इस बार भी आप मुझे अपने साथ गाँव के पोखर में मछली पकड़ने ले चलिएगा । ' ' मोनू ने दादा जी को उदास देखकर बात पलटी । वह जानता था कि दादा जी को पोखर के किनारे बैठकर , पोखर में बंसी ' डालकर मछली पकड़ना अच्छा लगता है । दादा जी की उदासी और गहरी हो गई । वे बोले , " गाँव का पोखर तो अब सूख गया है । वहाँ तो बस कीचड़ ही कीचड़ बचा है । " मोनू को यह सुनकर बहुत अचरज हुआ । उसने पूछा , " पोखर का पानी कहाँ चला गया , दादा जी ? " " बेटा , गाँवों में भी अब शहर की हवा पहुँच गई है । पेड़ काटे जा रहे हैं । जिसके कारण मिट्टी की पानी को - रोकने की शक्ति कम होती रही है । पक्की सड़कें बन जाने से पोखर की तरफ का ढलान भी अब पूरा नहीं रहा । बरसात पानी नालों में बह जाता है । तुम्हारे चाचू बता रहे थे कि कुरै का पानी भी बहुत नीचे चल गया है । अब तो ट्यूबवेल का हो सहारा है । पर यदि ऐसे ही हम ज़मीन से पानी निकालते रहेंगे तो वह भी कितने दिन चल पाएगा । " दादा जी की बातों से उनके मन का दुख छलक रहा था । " तो ये लोग रेन हारवेस्टिंग " क्यों नहीं करते दादा जी ? " " बेटा , उसके लिए सही जानकारी अभी गाँव तक पहुँची ही नहीं है । वैसे भी गाँव के पढ़े - लिखे नौजवान शहरों की ओर चले जाते हैं । जो ज्ञान उन्हें गाँवों में बाँटना चाहिए , उसे वे शहरों तक ले जाते हैं । " अब दादा जी का दुख मोनू समझ पा रहा था । उसने कहा , " आप दुखी मत हों दादा जी मैं गाँव में ही रहकर खेती करूँगा । पापा से भी कहूँगा कि वे रेन हारवेस्टिंग की जानकारी देने वाले अंकल को लेकर गाँव में आएँ । मैं आपके साथ चलूँगा । हम चा के खेत के चारों ओर पेड़ लगाएँगे । फिर तो मिट्टी पानी रोकेगी , और तालाब में पानी भर जाएगा न ! " दादा जी ने प्यार से मोनू की पीठ थपथपाई और कहा , " मोनू राजा हमें गाँवों में अपने जीवन के लिए जल , ज़मीन और जानवरों की बहुत ज़रूरत है । इन तीनों की सही देखभाल और सुरक्षा के लिए अब नई पीढ़ी को आगे आना होगा । मुझे प्रसन्नता है कि तुम गाँव में आकर खेती करने के विषय में सोचते हो । " रेलगाड़ी की रफ़्तार कम हो रही थी । गाँव का स्टेशन पास आ रहा था । मोनू से बात करके दादा जी को ऐसा विश्वास हो चला था कि गाँवों का भविष्य उज्ज्वल होगा ।

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