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भारत रत्न सम्मान से पुरस्कृत भूपेन हजारिका की जीवनी

भारत के लोक संगीत को जन - जन तक पहुंचाने वाले भूपेन हजारिका के जन्म , शिक्षा और कृतित्व पर इस लेख में प्रकाश डाला गया है । भारत सरकार ने उनकी उपलब्धियों का सम्मान करते हुए उन्हें ' भारत रत्न सम्मान से पुरस्कृत किया । अपनी आवाज से लाखों लोगों को प्रशंसक बनाने वाले कवि , संगीतकार , गायक , अभिनेता , पत्रकार , लेखक और निर्माता भूपेन हजारिका ने असम को समृद्ध लोक संस्कृति को गीतों के माध्यम से सारी दुनिया में पहुँचाया । संगीत प्रेमियों के लिए हजारिका प्रेम , प्रकृति और मानवीय संवेदनाओं के गीतकार थे । वे ऐसे विलक्षण कलाकार थे जो अपने गीत स्वयं लखने और संगीतबद्ध करते थे । उन्हें दक्षिण एशिया के श्रेष्ठतम सांस्कृतिक दूतों में से एक माना जाता है । भूपेन हजारिका के गीतों ने लाखों दिलों को हुआ है । अपनी मूल भाषा असमिया के अतिरिक्त वे हिंदी , बांग्ला आदि अनेक भाषाओं के गीत भी गाते थे । हजारिका की असरदार आवाज़ में जिन्होंने उनके गीत ' ओ गंगा तू बहती है क्यों ' और ' दिल हूम - हूम करे ' को सुना है वह इस बात को अस्वीकार नहीं कर सकता कि भूपेन दा का जादू उस पर अवश्य चला है । फ़िल्म ' गांधी टू हिटलर ' में उन्होंने गांधी जी का प्रिय भजन ' वैष्णव जन तो तेने कहिए ' गाया था । भारत सरकार ने उन्हें 1911 में ' पद्मभूषण ' और 2019 में ' भारत रत्न ' ( मरणोपरांत ) से सम्मानित किया । भूपेन हजारिका का जन्म 8 सितंबर 1926 को असम के तिनसुकिया जिले के सदिया में हुआ था । इनके पिता का नाम नीलकांत और माता का नाम शांतिप्रिया था । हज़ारिका के पिता मूलतः , असम के शिवसागर जिले के नाज़िरा शहर से थे । अपने भाई - बहनों में सबसे बड़े भूपेन को संगीत के प्रति लगाव अपनी माता के द्वारा गाई जाने वाली लोरियों और असम में गाए जाने वाले पारंपरिक गीतों के कारण हुआ । पारंपरिक असमिया संगीत की शिक्षा इन्हें जन्म के साथ घुट्टी में ही मिल गई थी । भूपेन ने अपना पहला गीत बचपन में ही दस वर्ष की आयु में लिखा और गाया । उन्होंने बारह वर्ष की आयु में असमिया चलचित्र ' इंद्रमालती ' में काम भी किया । 1935 में भूपेन हजारिका के पिता तेजपुर आ गए । यहाँ से 1940 में भूपेन ने मेट्रीक्युलेशन की परीक्षा पास की । आगे की पढ़ाई के लिए वे गुवाहाटी चले गए । 1942 में गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से इंटरमिडिएट किया । आगे की शिक्षा के लिए भूपेन बनारस ( वाराणसी ) चले गए । जहाँ से 1944 में बी . ए . और 1946 में राजनीतिशास्त्र में एम . ए . किया । न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनीवर्सिटी से छात्रवृत्ति प्राप्त होने पर भूपेन न्यूयॉर्क चले गए । वे 1949 में न्यूयॉर्क आए थे और वर्ष 1952 में इन्होंने अपनी पी . एच डी . पूरी की शिक्षा पूरी करने के पश्चात भूपेन गुवाहाटी विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हो गए । 1993 में इन्हें असम साहित्य सभा ' का अध्यक्ष भी चुना गया । तेजपुर में शिक्षा ग्रहण करते समय भूपेन ने एक कार्यक्रम में अपनी माता जी द्वारा सिखाया गया असमी भाषा का परंपरागत शास्त्रीय असमिया भक्ति गीत जिसे श्रीमंत शंकर देव और श्री श्री माधवदेव ने रचा है ; गाया । असमिया भाषा के प्रसिद्ध गीतकार श्री ज्योति प्रसाद अग्रवाल इस कार्यक्रम में उपस्थित थे । उन्होंने बालक भूपेन की प्रतिभा को पहचाना । तेजपुर में असमिया संस्कृति की मूर्धन्य हस्तियों से उनका संबंध बढ़ा । यहीं से उनका संस्कृति और कला की ओर आकर्षण बढ़ना आरंभ हुआ । भूपेन हजारिका बहुमुखी प्रतिभा संपन्न कलाकार थे । इन्होंने होश सँभालते ही गीत संगीत को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बना लिया और लगातार साठ वर्षों तक भारतीय संगीत जगत में योगदान दिया । अमरीका में रहने के दौरान इनकी भेंट " प्रसिद्ध अश्वेत गायक पॉल राब्सन से हुई । उन्होंने राब्सन के गीत ' ओल्ड मैन रिवर ' को हिंदी में गाया । आगे चलकर यही गीत ' ओ गंगा बहती होत ' वाम पंथियों की कई पीढ़ियों का राष्ट्रगीत बना रहा । एक अखबार को दिए साक्षात्कार में हज़ारिका ने अपनी गायकी का श्रेय आदिवासी संगीत को दिया था । भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार ' विजेता भूपेन हजारिका ने कहा था , ' मैं लोक संगीत सुनते हुए बड़ा हुआ । इसी के जादू ने गायकी के प्रति रुझान पैदा किया । मुझे गायन कला माँ से मिली , जो मेरे लिए लोरियाँ गाती थी । ' हज़ारिका ने अपनी पहली फ़िल्म ' एरा बतर सुर ' का निर्देशन 1956 में किया । भूपेन हजारिका को देश के अग्रणी फ़िल्म निर्माताओं में स्थान दिया गया था । संपूर्ण भारत और विश्व सिनेमा के मानचित्र पर असमिया सिनेमा को स्थान दिलाने में उनका विशेष योगदान रहा है । सिनेमा के माध्यम से उन्होंने पूर्वोत्तर के सातों राज्यों की आदिवासी संस्कृति को एकीकृत किया । उनकी उल्लेखनीय लोकप्रियता उन्हें 1967 से 1970 तक एक स्वतंत्र सदस्य के रूप में विधानसभा तक लेकर पहुँची । भूपेन ने असम में गुवाहाटी में राज्य स्वामित्व वाला फ़िल्म स्टूडियो शुरू किया जो अपनी तरह का पहला स्टूडियो है । एक गायक के रूप में भूपेन हजारिका को अपनी मध्यम आवाज़ और शब्दों के शुद्ध उच्चारण के लिए जाना जाता है । गीतकार के रूप में इन्हें ऐसे कलात्मक गीतों के लिए जाना जाता है जिनमें अनेक दृष्टांत दिए गए हैं । इनके गीतों में सामाजिक और राजनैतिक टीका भी दिखाई देती है । संगीतकार के रूप में इन्होंने लोकसंगीत का बहुत प्रयोग किया है । बाँग्लादेश में हुए न जनमत संग्रह ' में इनका गीत ‘ मानुष - मानुषेर जोना ' वहाँ के राष्ट्रगान के बाद दूसरा सबसे अधिक पसंद किया जाने वाला चुना गया था । इससे इनकी लोकप्रियता का पता चलता है । अस्वस्थता का अनुभव करने पर भूपेन हज़ारिका को मुंबई के कोकिला बेन अस्पताल में भरती किया गया । वह दिन 30 1911 था । 5 नवंबर को उनका निधन हो गया । ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर 9 नवंबर 1911 को उनका अंतिम संस्कार किया कहा जाता है कि उनके अंतिम संस्कार के समय लगभग पाँच लाख लोगों का जन सैलाब उमड़ पड़ा था आज भी उ याद आने पर ' रुदाली ' फ़िल्म का गीत ' दिल हुम हुम करे घबराए ' गूँजता हुआ सुनाई देता है ।

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