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बेगम हजरत महल

भारत भूमि की पावन धरती पर ऐसी अनगिनत महिलाओं ने जन्म लिया , जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर अपने राज्य की स्वाधीनता की रक्षा की । ऐसी वीरांगनाएँ केवल राजन और मराठा स्त्रियाँ ही नहीं थीं . मुगल स्त्रियाँ भी थीं , जिन्होंने भारत - भूमि को अपना ही देश समझा और अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलाने के लिए युद्ध की आग में कूद पड़ीं । अंग्रेजों की कूटनीति ताकत और षड्यंत्रों के सामने जहाँ बड़े - बड़े राजा महाराजा नतमस्तक हो गए थे . वहीं अवध को बंगम हजरत महल ने उन्हें युद्ध की चुनौती देकर यह जता दिया कि हिंदुस्तान की जनता उनको हुकूमत नहीं चाहती है ।

अवध के नवाब वाजिद अली शाह भी अस्वस्थ होने के कारण अंग्रेज़ों का विरोध करने में स्वयं को असमर्थ समझ रहे थे । 6 फरवरी , 1856 को अंग्रेज़ हुक्मरानों ने अवध राज्य को ब्रिटिश राज्य में मिलाने का हुक्म जारी किया । नवाब वाजिद अली शाह के समर्पण कर देने पर उन्हें अवध से कलकत्ता भेज दिया गया ।

अंग्रेजों से लोहा लिए बिना ही नवाब वाजिद अली शाह का आत्मसमर्पण कर देना बेगम हजरत महल को नहीं सुहाया । उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की ईंट से ईंट बजा देने की कसम खाई । अवध की शासन - सत्ता को वे यूँ ही अंग्रेजों के हाथों नहीं सौंपना चाहती थी । उन्होंने अपने पुत्र बिरजिस कार को नवाब वाजिद अली शाह का वारिस और अवध का भावी शासक बनाने का निर्णय किया । 

अवध की जनता के प्रति मातृत्व का भाव रखने वाली बेगम हजरत महल अद्वितीय रूप , गुण एव पुद्धि संपन्न मुगल स्त्री थी । उनके बचपन का नाम ' मुहम्मदी खानम ' था । उनका जन्म फ़ैजाबाद में हुआ था । उनके अप्रतिम रूप सौंदर्य को देखते हुए उन्हें ' महल परी ' कहा गया । अवध के नवाब बाजिद अली शाह से निकाह होने के बाद वे ' बेगम हजरत महल ' कहलाई ) बचपन से ही जिस धरती पर वे खेलीं बड़ी हुई , अवध की बेगम बनी उस धरती को वे अंग्रेजों के हाथों भला कैसे सीप सकती थी ? उन्होंने अवध की सेना को ललकारते हुए कहा- " सैनिको , अवध हमारा राज्य है । हम यहाँ अंग्रेजी हुकूमत को हगिंज बर्दाशत नहीं करेंगे । " बेगम के उत्साह ने सोए हुए अवध - सैनिकों के स्वाभिमान को जगा दिया । अवध की जनता वहाँ के किसान , व्यवसायी और सैनिक सभी बेगम के विचारों से प्रभावित हुए । उनका हौसला बुलंद हो गया । देखते ही देखते बेगम ने एक बड़ी विद्रोही सेना तैयार कर ली । बेगम ने स्वयं घोड़े पर चढ़कर सेना का नेतृत्व किया । अवध को विद्रोही फ़ौज पूरी ताकत और तैयारी के साथ अंग्रेजों पर टूट पड़ी । अंग्रेजी सेना के कमांडर सर हेनरी लॉरस ने बड़ी बहादुरी के साथ चिनहट गाँव के पास विद्रोहियों को रोकने का प्रयास किया । घमासान लड़ाई हुई और अवध के देश - प्रेमी रणबांकुरों के आगे अंग्रेजी फ़ोज ने घुटने टेक दिए । हेनरी लॉरस को विवश होकर पीछे हटना पड़ा । उसने लखनऊ को खाली कर दिया । जीत का जश्न मनाती हुई अवध की विद्रोही सेना ने लखनऊ पर कब्जा कर लिया । चारों ओर बेगम की जय - जयकार होने लगी । इस विजय ने विद्रोह की एक नई लहर जगा दी । लखनऊ फ़तह के बाद वजीरों ने एक मत होकर बेगम हजरत महल को अवध के शासन की बागडोर संभालने का अधिकार दिया , परंतु बेगम ने इस पदवी को लेने से इंकार करते हुए अपने दस वर्षीय पुत्र मिर्ज़ा बिरजिस कादर को अवध का नवाव घोषित कर स्वयं को उसका सरपरस्त ही माना ।

लखनऊ तह ने अवध के सैनिकों , जनता और किसानों के मन में बेगम के लिए सम्मान और आ की भावना जगा दी । बेगम ने भो कुशल सम्राज्ञी की भाँति घूम - घूमकर राज्य का दौरा किया लोग को समस्याएँ समझी और उन्हें दूर करने के उपाय किए । बेगम हजरत महल को कार्यकुशलता एवं प्रबंधन से अवध की जनता बहुत प्रभावित हुई । वह बेगम के इशारों पर उठने - बैठने लगी । इसके पहले कोई भी शासक इतना लोकप्रिय नहीं हुआ था । अंग्रेज़ उनकी लोकप्रियता से जलने लगे । 

अवध का शासन गंवाकर अंग्रेज चुप बैठने वाले नहीं थे । एक स्त्री के हाथा पराजय उन्हें सहन नहीं हो रही थी । उन्होंने 1858 ई . में फिर अवध पर हमला किया । बेगम ने बड़ी हिम्मत के साथ अंग्रेजों का मुकाबला किया , परंतु साधन - संपन्न अंग्रेजी सेना की तोपों के आगे अवध के सैनिक कुछ कमजोर पड़ गए । बेगम ने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ युद्ध भूमि से भागकर बहराइच के किले में शरण ली और फिर से अंग्रेजों पर हमला करने के लिए सेना का संगठन करने लगी । राजा जयलाल सिंह ने इस कार्य में उनकी पूरी सहायता की । 

अंग्रेजों ने अवध पर कब्जा कर लिया । परंतु वे जानते थे कि जब तक बेगम हजरत महल पकड़ी नहीं जाती है , तब तक वे अवध में चैन से नहीं जी सकते । बेगम के इशारों पर चलने वाले अवध के लोग आसानी से अंग्रेजी हुकूमत को स्वीकार नहीं करेंगे । अवध में रह - रहकर विद्रोह की चिंगारियों फूटती रहेंगी । इसलिए उन्होंने बेगम के पास संधि - प्रस्ताव भेजा कि अंग्रेज सरकार अंग्रेजों के खिलाफ़ बगावत करने के उनके गुनाह को माफ़ कर देगी , उनके गुजारे के लिए उन्हें पेंशन के रूप में अच्छी - खासी रकम देगी और उनके बेटे की पढ़ाई - लिखाई का पूरा बंदोबस्त करेगी । 

बेगम हजरत महल ने उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया । उन्होंने संधि पत्र का जवाब देते हुए कहा- " अवध की आजादी और हिफ़ाजत के लिए मैं मैदान - ए - जंग में लड़ते - लड़ते कुर्बान हो जाऊँगी , पर अवध की आजादी का सौदा नहीं करूंगी ।" 

अंग्रेजों को ऐसे निर्भीक उत्तर की अपेक्षा नहीं थी । भारी लाव - लश्कर लेकर वे बहराइच किले पर टूट पड़े । बेगम की फ़ौज के कुछ लोगों को जागीर का लालच देकर अंग्रेजों ने अपनी ओर मिला लिया था । बेगम की सेना ने पूरी हिम्मत और ताकत से अंग्रेजी सेना का मुकाबला किया , परंतु गद्दारों के कारण बेगम की सेना के पैर उखड़ने लगे । 

बेगम हजरत महल के सेनापति ने उन्हें समझाते हुए कहा - "बेगम साहिबा . हमारी फ़ौज अब ज्यादा देर अंग्रेजों के सामने टिक नहीं पाएगी । हमारी शिकस्त होगी । आप कुछ ईमानदार सिपाहियों के साथ मैदान - ए - जंग से दूर चली जाएँ ।" 

बेगम क्रोधभरी आँखों से सिपहसालार की ओर देखकर बोली " हरगिज नहीं । मैं आखिरी साँस तक मैदान - ए - जंग में अंग्रेजों का मुकाबला करूंगी । "

सेनापति ने उन्हें बहुत समझाया , पर बेगम हजरत महल मानने को तैयार नहीं थीं । अंत में सेनापति ने कहा- " अंग्रेजों से अवध की बागडोर हासिल करने के लिए बेगम साहिबा ! आपका और जनाव विरजिस कादर का महफूज रहना जरूरी है इसलिए आप मैदान - ए - जंग से निकल फ़ौरन नेपाल जाकर नेपाल नरेश की शरण लें । सोचने का वक्त नहीं है । " 

बेगम साहिबा को विवश होकर पुत्र के जीवन की रक्षा के लिए नेपाल जाना पड़ा । 1857 ई ० में अंग्रेजों ने अपनी पूरी ताकत से विद्रोहियों , क्रांतिकारियों को कुचल दिया । इससे बेगम हजरत महल की उम्मीदें टूट गई । उन्होंने नेपाल में एक मामूली स्त्री के समान अपने बेटे की परवरिश करते हुए अपना जीवन यापन किया । 1879 ई ० में उनकी मृत्यु हो गई । 

बेगम की याद में लखनऊ के एक विशाल पार्क को ' बेगम हजरत महल पार्क ' का नाम दिया गया । 15 अगस्त , 1962 को पुराने विक्टोरिया पार्क , हजरतगंज में उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए , उनकी 1857 की क्रांतिकारी योजनाओं की चर्चा की गई । वहाँ उनकी संगमरमर की मूर्ति स्थापित की गई । 10 मई 1984 को भारत सरकार ने बेगम हजरत महल के सम्मान में डाक टिकट जारी किया । इस प्रकार , अतीत के महान स्वाधीनता सेनानियों के बीच बेगम हजरत महल का चरित्र उभरकर वर्तमान युग में कठिन परिश्रम , त्याग और बलिदान से प्राप्त की गई देश की स्वतंत्रता को बनाए रखने की प्रेरणा दे रहा है ।

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